लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
राजा-अच्छा, वह दुष्ट
अंधा!
साईस-हाँ हुजूर,
वह एक औरत
को निकाल ले
गया है।
राजा-अच्छा! उसे तो
लोग कहते थे,
बड़ा भला आदमी
है। अब यह
स्वाँग रचने लगा!
साईस-हाँ हुजूर,
उसका आदमी फरियाद
करने आया है।
हूकुम हो, तो
लाऊँ।
राजा साहब ने
सिर हिलाकर अनुमति
दी और एक
क्षण में भैरों
दबकता हुआ आकर
खड़ा हो गया।
राजा-तुम्हारी औरत है?
भैरों-हाँ हुजूर,
अभी कुछ दिन
पहले तो मेरी
ही थी!
राजा-पहले से
कुछ आमद-रफ्त
थी?
भैरों-होगी सरकार,
मुझे मालूम नहीं।
राजा-लेकर कहाँ
चला गया?
भैरों-कहीं गया
नहीं सरकार, अपने
घर में है।
राजा-बड़ा ढीठ
है। गाँववाले कुछ
नहीं बोलते?
भैरों-कोई नहीं
बोलता, हुजूर!
राजा-औरत को
मारते बहुत हो?
भैरों-सरकार, औरत से
भूल-चूक होती
है, तो कौन
नहीं मारता?
राजा-बहुत मारते
हो कि कम?
भैरों-हुजूर, क्रोधा में
यह विचार कहाँ
रहता है।
राजा-कैसी औरत
है, सुंदर?
भैरों-हाँ, हुजूर,
देखने-सुनने में
बुरी नहीं है।
राजा-समझ में
नहीं आता, सुंदर
स्त्री ने अंधो
को क्यों पसंद
किया! ऐसा तो
नहीं हुआ कि
तुमने दाल में
नमक ज्यादा हो
जाने पर स्त्री
को मारकर निकाल
दिया हो और
अंधो ने रख
लिया हो?
भैरों-सरकार, औरत मेरे
रुपये चुराकर सूरदास
को दे आई।
सबेरे सूरदास रुपये
लौटा गया। मैंने
चकमा देकर पूछा,
तो उसने चोर
को भी बता
दिया। इस बात
पर मारता न,
तो क्या करता?
राजा-और कुछ
हो, अंधा है
दिल का साफ।
भैरों-हुजूर, नीयत का
अच्छा नहीं।
यद्यपि महेंद्रकुमारसिंह बहुत न्यायशील
थे और अपने
कुत्सित मनोविचारों को प्रकट
करने में बहुत
सावधान रहते थे।
ख्याति-प्रिय मनुष्य को
प्राय: अपनी वाणी
पर पूर्ण अधिाकार
होता है; पर
वह सूरदास से
इतने जले हुए
थे, उसके हाथों
इतनी मानसिक यातनाएँ
पाई थीं कि
इस समय अपने
भावों को गुप्त
न रख सके।
बोले-अजी, उसने
मुझे यहाँ इतना
बदनाम किया कि
घर से बाहर
निकलना मुश्किल हो गया।
क्लार्क साहब ने
जरा उसे मुँह
क्या लगा लिया
कि सिर चढ़
गया। यों मैं
किसी गरीब को
सताना नहीं चाहता,
लेकिन यह भी
नहीं देख सकता
कि वह भले
आदमियों के बाल
नोचे। इजलास तो
मेरा ही है,
तुम उस पर
दावा कर दो।
गवाह मिल जाएँगे
न?
भैरों-हुजूर, सारा मुहल्ला
जानता है।
राजा-सबों को
पेश करो। यहाँ
लोग उसके भक्त
हो गए हैं।
समझते हैं, वह
कोई ऋषि है।
मैं उसकी कलई
खोल देना चाहता
हूँ। इतने दिनों
बाद यह अवसर
मेरे हाथ आया
है। मैंने अगर
अब तक किसी
से नीचा देखा,
तो इसी अंधो
से। उस पर
न पुलिस का
जोर था, न
अदालत का। उसकी
दीनता और दुर्बलता
उसका कवच बनी
हुई थी। यह
मुकदमा उसके लिए
वह गहरा गङ्ढा
होगा, जिसमें से
वह निकल न
सकेगा। मुझे उसकी
ओर से शंका
थी, पर एक
बार जहाँ परदा
खुला कि मैं
निश्ंचित हुआ। विष
के दाँत टूट
जाने पर साँप
से कौन डरता
है? हो सके,
तो जल्दी ही
मुकदमा दायर कर
दो।
किसी बड़े आदमी
को रोते देखकर
हमें उससे स्नेह
हो जाता है।
उसे प्रभुत्व से
मंडित देखकर हम
थोड़ी देर के
लिए भूल जाते
हैं कि वह
भी मनुष्य है।
हम उसे साधारण
मानवीय दुर्बलताओं से रहित
समझते हैं। वह
हमारे लिए एक
कुतूहल का विषय
होता है। हम
समझते हैं,वह
न जाने क्या
खाता होगा, न
जाने क्या पीता
होगा, न जाने
क्या सोचता होगा,
उसके दिल में
सदैव ऊँचे-ऊँचे
विचार आते होंगे,
छोटी-छोटी बातों
की ओर तो
उसका धयान ही
न जाता होगा-कुतूहल का परिष्कृत
रूप ही आदर
है। भैरों को
राजा साहब के
सम्मुख जाते हुए
भय लगता था,
लेकिन अब उसे
ज्ञात हुआ कि
यह भी हमीं-जैसे मनुष्य
हैं। मानो उसे
आज एक नई
बात मालूम हुई।
जरा बेधाड़क होकर
बोला-हुजूर, है
तो अंधा, लेकिन
बड़ा घमंडी है।
आपने आगे तो
किसी को समझता
ही नहीं। मुहल्लेवाले
जरा सूरदास-सूरदास
कह देते हैं,
तो बस, फूल
उठता है। समझता
है, संसार में
जो कुछ हूँ,
मैं ही हूँ।
हुजूर, उसकी ऐसी
सजा कर दें
कि चक्की पीसते-पीसते दिन जाएँ।
तब उसकी सेखी
किरकिरी होगी।